Tuesday, 19 August 2014

किसी और बात का ज़िक्र ना यार कर



किसी और बात का ज़िक्र ना यार कर
मेरे पास आ मुझसे मिल मुझे प्यार कर।


मेरे लबों पे अल्फ़ाज़ हैं मुरझाये मुरझाये से
तू आकर अपने होंठों से इन पे बहार कर।


याद करते करते तुझे बेहोशी आने लगी है
आ तू ही लेजा जान जाने का ना इंतज़ार कर।


तुझे काम होंगे हज़ार पर ये भी तेरा ही काम है
तेरा ही मर्ज़ है मरीज़ भी, तू ही ठीक यार कर।


मन तो था बिन बताये कभी मन की हो जाये
कहना पड़ रहा है तुझसे थककर ख़ुद से हारकर।


मैं तुझे बार बार यूँ ही बुलाती रहूँगी, सुन बादल
मैं धरती हूँ उजड़ती हूँ जब तू जाता है संवारकर।

तुम मेरे लिये

तुम मेरे लिये
सुबह का कोमल सपना हो
पसंदीदा फूलों के
पार्क में घूमने जैसा।
मैं तुम्हारे लिये
एक कठिन चुनौती हूँ
पर्वत चीर देने जैसा है
मुझे प्यार कर पाना।

मेरी सैर के मज़े के लिये
तुम ये जंग़ कभी मत हारना! 

Friday, 4 July 2014

जुलाई

जुलाई

लायी या बुलायी जा सकती

तो मार्च ख़त्म होते ही मंगवा लेता

या ख़ुद जाकर जंगलों से

एक नयी ताज़ी जुलाई उठा लाता।

धुली धुली नहायी नहायी, जुलाई!

दरवाज़े के बाहर छतरी के स्टैंड में सजा देता

और कॉफ़ी के मग के साथ

खिड़की पर खड़े होकर देखता -

कैसे कभी जुलाई बादलों को हड़काती लाती है

कैसे कभी बादल जुलाई के पीछे-पीछे ख़ुद चले आते हैं।

तुम



बहुत तंगहाल था।
दो वक़्त की मुस्कुराहट के भी लाले थें।
तुम्हारी हंसी सुनी – खन खन खन
ख़ासा अमीर हो गया!


*****


बहारें जितनी भी बाक़ी हैं मेरे हिसाब की
तुम आ जाओ तो सब आ जायें।


*****



रात भर चांदनी तुम्हारी खिड़की पर बैठी रही
चांद तुम्हारे दिख जाने का इंतज़ार करता रहा।


*****


ज़रा ज़िन्दगी से गुज़र रहा था... 
तुम्हें देखा तो जी रुकने को मचल गया!


*****


मेरी कोई ‘आह’ जाकर सांकल छू आयी होगी
दरवाज़े पर रात तुमने दस्तक जो पायी होगी।


*****


स्लेट पर लिख कर सब शिकायतें मिटा देता हूँ 
सिर्फ प्यार है तुम्हारा जिसे पत्थर पर उकेरा है।


*****

वो होता है ना 
आप रात को सोते वक़्त तकिये से कह दें 
कि मुझे सुबह इतनी बजे उठा देना 
तो इस तरह वक़्त पे उठ भी जाते हैं..... 
मैं हर रात अपने तकिये की बगल में 
एक और तकिया रखकर उससे कहता हूँ 
कि सुबह तक तुम्हें ले आये।


*****

याद में तुम्हारी नींद ना भी आये
जागे रहना तो ना यूं दुश्वार हो।

*****

उस ज़िंदगी का वायदा करता हूँ 
जिसमें तुम जब भी 
जिस भी दिशा में उड़ना चाहोगी 
मैं तुम्हारे पंख बन जाउंगा।


Sunday, 15 June 2014

‘तेरा मुझसे है नाता कोई’ (यादों का इडियट बॉक्स विद नीलेश मिस्रा)


तुम और मैं

तुम वही हो जिसे राजकुमारी कहते हैं सुदूर देश की
मैं वही हूं जो श्वेत अश्व की लगाम थामे है
तुम्हें मुझ में रम जाने की चाह है, ज्यूलियट!
मुझ मजनूं को तुम्हारे इश्क़ में जल ख़ाक होने का शौक है,
सारे किस्से हमारे ही आने का एलान थें।
साहित्य की प्रेमिका तुम्हीं हो
कहानियों का व्याकुल मन मैं ही हूं।


हम हैं, तो जग है
हम साथ हैं, तो जग में जीवन है।
यहां आने से पहले से
थें हम बिल्कुल यहीं।
तुम धरती हो
मैं ही आकाश।
सुख है
क्योंकि हमें भोगना है
शब्द हैं
क्योंकि मुझे तुम्हें मन की कहनी थी...
राधा और कृष्ण, हम दोनों नहीं तो और कौन हैं?

Saturday, 14 June 2014

‘दो पुराने से लोग’ (यादों का इडियट बॉक्स विद नीलेश मिस्रा)


तुम

तुम
अपनी चाय में शक्कर बहुत लेती हो
मैं बिना चीनी की ब्लैक कॉफ़ी पीता हूं
जब हम अपने अपने कप लिये
एक दूसरे के साथ बैठते हैं
मैं चुपचाप गिनता हूं
तुमने कितनी चम्मच शुगर डाली है कप में.....


इतनी शुगर कैसे अच्छी लगती है तुम्हें!
इतनी शुगर का करती क्या हो तुम?
चम्मच, चीनी और तुम्हें सोचता हुआ
मैं अपनी कॉफ़ी पीता हूं
जो मुझे मीठी लगती है!


तुम टैलेपैथी से बताती हो –
“मैं तुम्हारे जीवन में शक्कर घोल रही हूं!”

मुझे

मुझे
बस उतनी ही आती है तुम्हारी याद
जितनी धूप,
ज़ब्त किये है सूरज ख़ुद में
तब से ही
जब धरती उससे ज़ुदा हुई थी!

मैं भी,
जिस दिन से तुम से मिलके लौटा हूं
सूरज सा धधक रहा हूं!

लाखों प्रकाशवर्ष सी दूरी है दो शहरों में
करोड़ों साल नुमा लम्हें बीत चुके हैं!

Wednesday, 11 June 2014

आखिरकार वो दिन आ गया.


आखिरकार वो दिन आ गया. वो अपने प्लैटफ़ॉर्म पर आ गया. गाड़ी में बैठ भी गया. उसका ट्रांसफर होना था. कब से टिकिट कटाकर इस दिन का इंतज़ार कर रहा था! प्लैटफ़ॉर्म वाली भीड़ को देखा – कैसे घूर रहे हैं उसे! बेवकूफ़ हैं सारे के सारे!    

बस जी, यही दिन है, जो इस स्टेशन से उस स्टेशन लेकर जायेगा. ये आखिरी प्लैटफ़ॉर्म एक आखिरी सफ़र फिर यहां कौन मुड़ के आयेगा. चलो, यार निकलते हैं! पर्दे के पीछे जाने क्या-क्या रखा है! डोरी हिलने लगी है. बस अभी खुल जाती है! बड़े बाबू का काम किया है अपन ने, बिना बड़े बाबू के कहे! उनकी पुरानी फ़ाइल देखकर ही अपने आप हिसाब बैठा लिया. अपने खाते में नयी एंट्री देखेंगे तो क्या खुश हो जायेंगे!    

लेकिन एक बात अच्छी नहीं हुई. उसे ख़याल आ गया कि कहीं अगर ट्रेन सही स्टेशन ना लेकर गयी तो? घूम के इस प्लैटफ़ॉर्म पर तो वापस आने से रही! गाड़ी छूटी तो शक़ पुख़्ता हुआ कि ये नींद वैसी नहीं है जैसी रोज़ आया करती है. जिन्होंने उसकी अर्जी बड़े बाबू के आगे लगायी थी उन्होंने अगर कोई नादानी या चालाकी की होगी तो? गलतियां इंसानों से हो भी जाती भी और इंसान जानबूझ कर करते भी हैं. अगर बड़े बाबू ने ही कह दिया कि – बेवकूफ़! मेरी उधारी या लड़ाई मैं ख़ुद सुलट सकता हूं. मेरे काम में तूने टांग अड़ाई ही क्यों? – तो?     

और इस तरह मरने से ठीक पहले उसके मन में ‘अगर’ आ गया! गले की रस्सी ने पोस्टमार्टम में इस बात की गवाही दी है कि इसी सदमे ने उसकी जान ले ली.


- एक कसाब की साइको-कहानी