मुझे
बस उतनी ही आती है तुम्हारी याद
जितनी धूप,
ज़ब्त किये है सूरज ख़ुद में
तब से ही
जब धरती उससे ज़ुदा हुई थी!
मैं भी,
जिस दिन से तुम से मिलके लौटा हूं
सूरज सा धधक रहा हूं!
लाखों प्रकाशवर्ष सी दूरी है दो शहरों में
करोड़ों साल नुमा लम्हें बीत चुके हैं!
बस उतनी ही आती है तुम्हारी याद
जितनी धूप,
ज़ब्त किये है सूरज ख़ुद में
तब से ही
जब धरती उससे ज़ुदा हुई थी!
मैं भी,
जिस दिन से तुम से मिलके लौटा हूं
सूरज सा धधक रहा हूं!
लाखों प्रकाशवर्ष सी दूरी है दो शहरों में
करोड़ों साल नुमा लम्हें बीत चुके हैं!
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