Sunday, 15 June 2014
तुम और मैं
तुम वही हो जिसे राजकुमारी कहते हैं सुदूर देश की
मैं वही हूं जो श्वेत अश्व की लगाम थामे है
तुम्हें मुझ में रम जाने की चाह है, ज्यूलियट!
मुझ मजनूं को तुम्हारे इश्क़ में जल ख़ाक होने का शौक है,
सारे किस्से हमारे ही आने का एलान थें।
साहित्य की प्रेमिका तुम्हीं हो
कहानियों का व्याकुल मन मैं ही हूं।
मैं वही हूं जो श्वेत अश्व की लगाम थामे है
तुम्हें मुझ में रम जाने की चाह है, ज्यूलियट!
मुझ मजनूं को तुम्हारे इश्क़ में जल ख़ाक होने का शौक है,
सारे किस्से हमारे ही आने का एलान थें।
साहित्य की प्रेमिका तुम्हीं हो
कहानियों का व्याकुल मन मैं ही हूं।
हम हैं, तो जग है
हम साथ हैं, तो जग में जीवन है।
यहां आने से पहले से
थें हम बिल्कुल यहीं।
तुम धरती हो
मैं ही आकाश।
सुख है
क्योंकि हमें भोगना है
शब्द हैं
क्योंकि मुझे तुम्हें मन की कहनी थी...
हम साथ हैं, तो जग में जीवन है।
यहां आने से पहले से
थें हम बिल्कुल यहीं।
तुम धरती हो
मैं ही आकाश।
सुख है
क्योंकि हमें भोगना है
शब्द हैं
क्योंकि मुझे तुम्हें मन की कहनी थी...
राधा और कृष्ण, हम दोनों नहीं तो और कौन हैं?
Saturday, 14 June 2014
तुम
तुम
अपनी चाय में शक्कर बहुत लेती हो
मैं बिना चीनी की ब्लैक कॉफ़ी पीता हूं
जब हम अपने अपने कप लिये
एक दूसरे के साथ बैठते हैं
मैं चुपचाप गिनता हूं
तुमने कितनी चम्मच शुगर डाली है कप में.....
इतनी शुगर कैसे अच्छी लगती है तुम्हें!
इतनी शुगर का करती क्या हो तुम?
चम्मच, चीनी और तुम्हें सोचता हुआ
मैं अपनी कॉफ़ी पीता हूं
जो मुझे मीठी लगती है!
तुम टैलेपैथी से बताती हो –
“मैं तुम्हारे जीवन में शक्कर घोल रही हूं!”
मैं बिना चीनी की ब्लैक कॉफ़ी पीता हूं
जब हम अपने अपने कप लिये
एक दूसरे के साथ बैठते हैं
मैं चुपचाप गिनता हूं
तुमने कितनी चम्मच शुगर डाली है कप में.....
इतनी शुगर कैसे अच्छी लगती है तुम्हें!
इतनी शुगर का करती क्या हो तुम?
चम्मच, चीनी और तुम्हें सोचता हुआ
मैं अपनी कॉफ़ी पीता हूं
जो मुझे मीठी लगती है!
तुम टैलेपैथी से बताती हो –
“मैं तुम्हारे जीवन में शक्कर घोल रही हूं!”
मुझे
मुझे
बस उतनी ही आती है तुम्हारी याद
जितनी धूप,
ज़ब्त किये है सूरज ख़ुद में
तब से ही
जब धरती उससे ज़ुदा हुई थी!
मैं भी,
जिस दिन से तुम से मिलके लौटा हूं
सूरज सा धधक रहा हूं!
लाखों प्रकाशवर्ष सी दूरी है दो शहरों में
करोड़ों साल नुमा लम्हें बीत चुके हैं!
बस उतनी ही आती है तुम्हारी याद
जितनी धूप,
ज़ब्त किये है सूरज ख़ुद में
तब से ही
जब धरती उससे ज़ुदा हुई थी!
मैं भी,
जिस दिन से तुम से मिलके लौटा हूं
सूरज सा धधक रहा हूं!
लाखों प्रकाशवर्ष सी दूरी है दो शहरों में
करोड़ों साल नुमा लम्हें बीत चुके हैं!
Wednesday, 11 June 2014
आखिरकार वो दिन आ गया.
आखिरकार वो दिन आ गया. वो अपने प्लैटफ़ॉर्म पर आ गया. गाड़ी में बैठ भी गया. उसका
ट्रांसफर होना था. कब से टिकिट कटाकर इस दिन का इंतज़ार कर रहा था! प्लैटफ़ॉर्म वाली
भीड़ को देखा – कैसे घूर रहे हैं उसे! बेवकूफ़ हैं सारे के सारे!
बस जी, यही दिन है, जो इस स्टेशन से उस स्टेशन लेकर जायेगा. ये आखिरी प्लैटफ़ॉर्म
एक आखिरी सफ़र फिर यहां कौन मुड़ के आयेगा. चलो, यार निकलते हैं! पर्दे के पीछे जाने
क्या-क्या रखा है! डोरी हिलने लगी है. बस अभी खुल जाती है! बड़े बाबू का काम किया
है अपन ने, बिना बड़े बाबू के कहे! उनकी पुरानी फ़ाइल देखकर ही अपने आप हिसाब बैठा
लिया. अपने खाते में नयी एंट्री देखेंगे तो क्या खुश हो जायेंगे!
लेकिन एक बात अच्छी नहीं हुई. उसे ख़याल आ गया कि कहीं अगर ट्रेन सही स्टेशन ना
लेकर गयी तो? घूम के इस प्लैटफ़ॉर्म पर तो वापस आने से रही! गाड़ी छूटी तो शक़ पुख़्ता
हुआ कि ये नींद वैसी नहीं है जैसी रोज़ आया करती है. जिन्होंने उसकी अर्जी बड़े बाबू
के आगे लगायी थी उन्होंने अगर कोई नादानी या चालाकी की होगी तो? गलतियां इंसानों
से हो भी जाती भी और इंसान जानबूझ कर करते भी हैं. अगर बड़े बाबू ने ही कह दिया कि –
बेवकूफ़! मेरी उधारी या लड़ाई मैं ख़ुद सुलट सकता हूं. मेरे काम में तूने टांग अड़ाई
ही क्यों? – तो?
और इस तरह मरने से ठीक पहले उसके मन में ‘अगर’ आ गया! गले की रस्सी ने
पोस्टमार्टम में इस बात की गवाही दी है कि इसी सदमे ने उसकी जान ले ली.
- एक कसाब की साइको-कहानी
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