ये नहीं कि तुझको चाहता नहीं हूं
तूने पूछा नहीं है, बताता नहीं हूं.
कभी-कभी मेरी खामोशी ही सुन लिया कर
ऐसा भी क्या ताना पुकारता नहीं हूं.
खार भी खाता हूं, ख़फ़ा भी होता हूं
तू कहता है प्यार जताता नहीं हूं.
मेरा ज़ख्म मुझको अजीज़ बहुत है
दुखे कितना ही मरहम लगाता नहीं हूं.
आंखों को तो अब सुराही कर लिया है
इनमें जो पानी है छलकाता नहीं हूं.
चलूंगा तब साथ में इक रिवाज़ चल पड़ेगा
दस्तूर पुराने मैं यूं भी निभाता नहीं हूं.
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