बात गुजिश्ता हुई भंवरों, कलियों, फूलों की
अब की जाये पैरवी नवेले उसूलों की.
खाता इक नया खोलने मौत भी आयी तो कब
देखता था जब वो बही पुराने वसूलों की.
कॉन्क्रीट तेरी छाया में मन कुछ रमता नहीं है
कोई तो अब बात करे नीमों की, बबूलों की.
दिल ने मेरे तुझको लाख के ऊपर ख़त लिखे
ज़ुबां की है ज़िम्मेदारी डाकिये की भूलों की.
दावतों में, जलसों में, तंदूर जो दहकाते हैं
बन जाती उनकी रसोई दो ईंट के चूल्हों की.
ज़रा संभल! यहां तो सच मत उगल,
गली है ये मंदिरों, मस्जिदों, स्कूलों की.
ख़ुद अपने हाथों में सिर्फ पासे दो रखता था
बात जो करके गया है तलवारों-त्रिशूलों की.
Beautiful. Glad to find such young talent in Hindi Writing of India :)
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