आशिक़ जी गया उस एक सहारे ही
उसकी तरफ़ देखकर जो ज़ुल्फ़ संवार ली.
ज़ुल्फ़ जो रह जाती उनके संवारे ही
तिरछी नज़र कर देती काम तमाम पूरा.
तिरछी नज़र के बीच हंसते-हंसाते ही
दिल में छुरी धंसाने की रिवायत निभा ली.
छुरी अपने हुस्न की दिल पर चलाते ही
किया वो भी क़त्ल इश्क़ जो बाकियों से किया.
इश्क़ कर बैठे हम बिन-पूछे बिन-बताये ही
गज़ल करें पहले या उनसे ही कहें.
हम ना जीते तो क्या वो भी तो हारे ही
आशिक़ ही ना रहे तो महबूब किस बात का.
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