Tuesday, 19 August 2014

किसी और बात का ज़िक्र ना यार कर



किसी और बात का ज़िक्र ना यार कर
मेरे पास आ मुझसे मिल मुझे प्यार कर।


मेरे लबों पे अल्फ़ाज़ हैं मुरझाये मुरझाये से
तू आकर अपने होंठों से इन पे बहार कर।


याद करते करते तुझे बेहोशी आने लगी है
आ तू ही लेजा जान जाने का ना इंतज़ार कर।


तुझे काम होंगे हज़ार पर ये भी तेरा ही काम है
तेरा ही मर्ज़ है मरीज़ भी, तू ही ठीक यार कर।


मन तो था बिन बताये कभी मन की हो जाये
कहना पड़ रहा है तुझसे थककर ख़ुद से हारकर।


मैं तुझे बार बार यूँ ही बुलाती रहूँगी, सुन बादल
मैं धरती हूँ उजड़ती हूँ जब तू जाता है संवारकर।

तुम मेरे लिये

तुम मेरे लिये
सुबह का कोमल सपना हो
पसंदीदा फूलों के
पार्क में घूमने जैसा।
मैं तुम्हारे लिये
एक कठिन चुनौती हूँ
पर्वत चीर देने जैसा है
मुझे प्यार कर पाना।

मेरी सैर के मज़े के लिये
तुम ये जंग़ कभी मत हारना!