Thursday, 7 March 2013

बाऊजी








आशिक़ जी गया उस एक सहारे ही


आशिक़ जी गया उस एक सहारे ही
उसकी तरफ़ देखकर जो ज़ुल्फ़ संवार ली.

ज़ुल्फ़ जो रह जाती उनके संवारे ही
तिरछी नज़र कर देती काम तमाम पूरा.

तिरछी नज़र के बीच हंसते-हंसाते ही
दिल में छुरी धंसाने की रिवायत निभा ली.

छुरी अपने हुस्न की दिल पर चलाते ही
किया वो भी क़त्ल इश्क़ जो बाकियों से किया.

इश्क़ कर बैठे हम बिन-पूछे बिन-बताये ही
गज़ल करें पहले या उनसे ही कहें.

हम ना जीते तो क्या वो भी तो हारे ही
आशिक़ ही ना रहे तो महबूब किस बात का. 

Monday, 4 March 2013

ये नहीं कि तुझको चाहता नहीं हूं

ये नहीं कि तुझको चाहता नहीं हूं
तूने पूछा नहीं है, बताता नहीं हूं.

कभी-कभी मेरी खामोशी ही सुन लिया कर
ऐसा भी क्या ताना पुकारता नहीं हूं.  

खार भी खाता हूंख़फ़ा भी होता हूं
तू कहता है प्यार जताता नहीं हूं.

मेरा ज़ख्म मुझको अजीज़ बहुत है
दुखे कितना ही मरहम लगाता नहीं हूं.


आंखों को तो अब सुराही कर लिया है
इनमें जो पानी है छलकाता नहीं हूं.  


चलूंगा तब साथ में इक रिवाज़ चल पड़ेगा
दस्तूर पुराने मैं यूं भी निभाता नहीं हूं.